मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

चीन को अरूणांचल प्रदेश की जनता ने दिया करारा जवाब

चीन भारत को उलझाने में लगा है। भारत के लचर राजनेता उसके जाल में फंसते जा रहें है। चीन के तेवर आक्रामक है और भारत हमेशा की तरह शांतिदूत के प्रतीक कबूतर की तरह दुबकता जा रहा है। चीन ने अरुणाचल प्रदेश को विवादित क्षेत्र बताते हुए एक बार फिर राय पर अपना दावा जताते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अरुणाचल यात्रा पर आपत्ति जताई, जिसे भारत ने तत्काल खारिज कर दिया। इसके ठीक एक दिन बाद राय में हुए मतदान में अरूणांचल के नागरिकों ने 70 प्रतिशत मतदान कर चीन को जवाब दे दिया है।
याद रहे चीन ने भारत के जम्मू-कश्मीर के 43 हजार 180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है, जबकि चीन का आरोप है कि भारत ने चीनी क्षेत्र की 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर अपना कब्जा कर रखा है, अधिकांश अरुणाचल प्रदेश में।
बहरहाल भारत के राजनेताओं से यादा उम्मीद करना बेकार है। 1962 के पहले के पंचशील की अत्यंत शांतिप्रिय अहिंसक संधि करने वाले देश के नेताओं में तेजी और आक्रामकता सदैव से नदारत रही है। हालांकि कुछ अपवाद भी हुए है। एक बार फिर 1962 के पहले वाले हालात बनते जा रहें है। इस बार चीन की तैयारी पहले से बेहतर है। नेपाल में उसका समर्थन और ताकत दोनो बढ़ी है। उसकी उत्तरी सीमा से सटा रूस अब सोवियत संघ जैसा ताकतवर नही है। भारत के लिए राहत की बात सिर्फ इतनी है कि उसकी अमेरिका व रूस दोनों से मित्रता है दोनों चीन से सतर्क भी है। लेकिन घरेलू मोर्चे पर समाजवादी नेता मुलायम मुलायम सिंह के अलाव कोई चीन के मसले पर बोलने से परहेज कर रहा है। मुलायम सिंह की अवाज नक्कारखाने में तूती की तरह है।
मुलायम ने समाजवादी चिंतक डा. राममनोहर लोहिया की पुण्यतिथि पर कहा कि प्रधानमंत्री कमजोर न होते तो चीन की क्या मजाल थी कि वह देश की सीमा में घुसने की हिम्मत करता। पाकिस्तानी आतंकवादी चीन के रास्ते से घुसपैठ कर रहे हैं। नेपाल के रास्ते से पाकिस्तान जाली नोट भेज रहा है। पर, केन्द्र सरकार चुप्पी साधे हुए है। मुलायम ने कहा कि प्रधानमंत्री को तो सिर्फ इस बात की चिंता सताए रहती है कि कैसे उनकी कुर्सी बची रहे। जिस देश की सरकार और प्रधानमंत्री कमजोर होगा, वह देश भी कमजोर होगा। रक्षामंत्री, चीन की घुसपैठ की घटना को कोई खास बात ही नहीं मानते। उन्होंने कहा कि जब मैं रक्षामंत्री था, तो चीन ने ऐसी ही हिमाकत करने की कोशिश की थी। मेरे निर्देश पर सेना ने चार किलोमीटर अंदर घुस कर राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। देश को आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए चीन और नेपाल के रास्ते से पाकिस्तान जाली नोट भेज रहा है। तीनों देश में मौजूद राजदूतों को इसका पता हैं। प्रधानमंत्री को बताना होगा कि उन्हें राजदूतों ने यह खबर दी कि नहीं। दी तो उन्होंने क्या कदम उठाया। मुलायम ने यह बयान देकर खुद को खांटी समाजवादी होना साबित किया है।
याद रहे चीन ने चुनाव प्रचार के लिए मनमोहन की अरुणाचल यात्रा के दस दिन बाद एतराज की प्रतियिा दी। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मा झाओशू ने कहा कि हम भारतीय पक्ष से चीन की गंभीर चिंता का समाधान करने और विवादित क्षेत्र में परेशानी खड़ी न करने की मांग करते हैं, ताकि चीन और भारत के रिश्तों में एक स्वस्थ विकास हो सके। उन्होंने उल्लेख किया कि चीन और भारत ने कभी आधिकारिक रूप से सीमांकन नहीं किया और भारत-चीन सीमा के पूर्वी हिस्से पर बीजिंग का दावा पूरी तरह साफ और स्पष्ट है। विदेश मंत्रालय के बयान के बाद भारत में चीनी राजदूत झांग यान नई दिल्ली में साउथ ब्लॉक के विदेश मंत्रालय में चीन मामलों के प्रभारी संयुक्त सचिव विजय गोखले से मिले।
भारत के विदेश मंत्री एसएम कष्णा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अरुणाचल यात्रा पर चीन की आपत्ति को यह कहकर खारिज कर दिया कि राय भारत का अखंड हिस्सा है। कष्णा ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है। हम इसपर कायम हैं। दूसरे क्या कहते हैं इससे कोई मतलब नहीं है। भारत सरकार का रुख है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न भाग है। इसके बाद भारत के विदेश मंत्रलय ने एक बयान भी जारी किया और मनमोहन की अरुणाचल यात्रा पर चीनी आपत्ति पर निराशा तथा चिंता जताई। विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है और चीन इससे वाकिफ है। उन्होंने कहा कि चीन का बयान सीमा मुददे पर दोनों देशों की सरकारों के बीच जारी चर्चा प्रयिा में मदद नहीं करेगा। याद रहे चीन ने दलाई लामा की अरूणांचल प्रदेश की यात्रा पर एतराज जताया था।
चीन की राजनीतिक चालों से साफ है िवह एक साथ कई मोर्चो पर काम कर रहा है। जबकि भारत सरकार की नीति बेहद ढुलमुल। यानि समय गुजरने दो कोई न कोई रास्ता निकलेगा वाली नीति पर चल रहा है। यह नीति केन्द्र में सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस पार्टी की प्रिय नीति रही है। चीन ने जता दिया है कि वह अरूणांचल के मुद्दा पर कत्तई उदार नही है। उसकी निगाह अरुणाचल प्रदेश की विकास परियोजनाओं के लिए एशियाई विकास बैंक मिलने वाली सहायता पर भी है।
याद रहे कि चीन ने पिछले साल भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अरुणाचल यात्रा पर आपत्ति जताई थी। चीन की आपत्ति के जवाब में तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा था कि अरुणाचल हमारे देश का एक अखंड हिस्सा है, इसलिए यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री देश के किसी भी हिस्से की यात्रा करेंगे।
भारत का विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता ने इस बात को रेखांकित किया कि चीन का इस तरह का बयान सीमा के मुद्दे पर दोनों सरकारों के बीच चल रही बातचीत की प्रयिा में सहयोगात्मक नहीं है। भारत चीन के साथ मतभेदों को निष्पक्ष, व्यावहारिक और आपसी स्वीकार्य तरीके से हल करना चाहता है। चीन की आक्रामकता उसकी तिब्बत में बढ़ती ताकत और नेपाल में दखल की नये सिरे से रणनीतिक समीक्षा की जरूरत है।
चीन के मामलों के जानकार और पूर्व विदेश मंत्री के नटवर सिंह ने खेद जताया कि भारत ने 1962 में चीन के साथ हुए युध्द के पीछे के कारणों की अभी तक व्यापक समीक्षा नहीं की है तथा इस प्रयिा की वाकई जरूरत है।
अपनी नई पुस्तक माई चायना इयर्स, 1956-88 के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने पिछले 60 साल में भारत चीन संबंधों के विभिन्न पहलुओं को छुआ है उन्होने कहा, 1962 क्यों हुआ। हमारी तरफ से इसके बारे में कोई गंभीर विश्लेषण नहीं किया गया। हालांकि नटवरसिंह चीन के मामले में कांग्रेस की नीतिओं के ही पक्षधर है। पर भी वे मानते है कि 1962 के पीछे माओत्से तुंग का भारत को सबक सिखाने का निर्णय था। -------------------

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

चीन की परेड से बेहाल होने से पहले सोचें


चीन के शक्ति प्रदर्शन पर, यह एक लोकतांत्रिक देश भारत के बुध्दिजीवियों की हाय तौबा है। मीडिया ने जिस तरह से पड़ोसी देश की परेड की भव्यता का खाका खींचा वह चौंकाता है। यह भी बताता है कि भारत में आक्रमणकारी क्यों सफल होकर सैकड़ों सालों तक कामयाबी से शासन चलाते रहें है। चीन पर पूरा मीडिया अभियान बेहद बेतुका और एकतरफा है। चीन की परेड को देखने के लिए सिर्फ तीस हजार लोगों को देखने की अनुमति दी गई। क्या यह लोकतांत्रिक भारत में संभव है यदि सरकार ऐसा कोई निर्णय ले तो मीडिया, तथाकथित सामाजसेवी संगठनों, लोकतंत्रवादियों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रया क्या होती। क्या लोग सरकार को निर्देश मानते, परेड देखने के लिए प्रदर्शन धरने, जनसभाएं न होती। विपक्षी दल का रवैया कैसा होता उसके बारे में भी सोचे। पिछले दिनों उरूगुर के सांप्रदायिक दंगों में जो कुछ हुआ वैसा क्या भारत में संभव है। ओलंपिक के पहले बीजिंग को संवारने के लिए जिस तरह लोगों को हटाया गया इलाके खाली कराये गये, क्या ऐसा करना भारत में संभव है। क्या उसी तरह दिल्ली को संवारना संभव है। चीन की भव्य परेड दिखाने वाली मीडिया को बताना चाहिए की चीन के श्रमिक कानून क्या कहते है। उनकी भारत के श्रमिक कानूनों से तुलना करना चाहिए। आप क्यों भूलते है कि देश की अर्थव्यस्था को मजबूत करने के लिए चीन के लोग देश कुछ साल पहले तक साइकिलों का इस्तेमाल करते थे। वहां की सड़कों पर कारें बेहद दुर्लभ थीं। क्या भारत में एक बच्चे का कानून उसी सख्ती से लागू किया जा सकता है जिस तरह से चीन में लागू है। क्या थ्येनमान चौक पर प्रदर्शन कर रहे लोकतंत्रवादियों को भारत में भी उसी तरह टैंकों के नीचे कुचलना संभव है जिस तरह से चीन में। क्या चीन में औद्योगिक व विकास की परियोजनाओं के लिए जमीनों का अधिग्रहण भारत की तरह बेहद मुश्किल है। क्या चीन की तरह भारत में कुछ इलाके में पत्रकारों व मीडिया के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। क्या भारत कश्मीर में उसी तरह के फैसले ले सकता है जिस तरह के फैसले चीन ने तिब्बत के मामले में लिया है। ऐसे न जाने कितने सवाल है जो भव्य परेड की ललाकालीन के नीचे से सिर उठाये हुए है। चीन की इस आतिशबाजी की चमक के पीछे उस बारूद का हाथ है जिसे कम्युनिस्ट शासन ने तैयार किया है। याद करीये सोवियत रूस को। क्या 1984 के विखंडन के पहले सोवियत संघ आज के चीन से पीछे और कम चमकदार था। क्या सोवियत संघ की तकनीकी और सैन्य श्रेठता आज के चीन से कमतर थी। फिर भारतीय मीडिया क्यों प्रलाप कर रहा है।
यही वजह है कि एक अक्टूबर को सैन्य परेड और सैंकड़ों टैंक तथा अन्य हथियारों का निरीक्षण थ्येनआनमन गेट पर बने मंच से राष्ट्र के नाम जारी संबोधन में चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ ने कहा- हमने हर प्रकार की कठिनाई और विफलताओं पर विजय हासिल की है और विश्व को ज्ञात है कि महान उपलब्धियों के लिए हम जोखिम उठाने का माद्दा रखते हैं। देशभक्ति से ओत प्रोत लोगों की उपस्थिति में जिंताओ ने कहा- गत 60 वर्षों में नव चीन का विकास और प्रगति इस बात का प्रमाण है कि समाजवाद ही चीन को बचा सकता है और केवल सुधार तथा खुलापन चीन, समाजवाद और मार्क्सवाद का विकास सुनिश्चित कर सकता है। उन्होंने कहा कि आज समाजवादी चीन आधुनिकीकरण के मार्ग पर प्रशस्त है और विश्व तथा भविष्य पूर्व की ओर बढ़ रहा है।

देश की जनता को गुमराह करने की यह छूट उसे सिर्फ भारत में मिल सकती है चीन में नही। दोनों देशों की शासन प्रणाली में मूल अंतर है। भारत में बोलने लिखने सहित तमाम आजादी चीन में नही मिल सकती है। हर चीज की कीमत होती है। असल में भारत व चीन की शासन प्रणाली में एक मूल अंतर है। भारत में जनता सरकार की नीति तय करती है और चीन में शासक तय करता है कि जनता कैसे चले क्या करें क्या न करें कहां जाए कहां न जाये। ऐसे चीन की तथाकथित चकाचौध से प्रभावित होने से पहले सोचे।