सोमवार, 6 सितंबर 2010

चीन सुपर पावर बनने की तैयारी-भारत‘कामन वेल्थ गेम’ की तैयारी में फिसड्डी

चीन सुपर पावर बनने के लिए चौतरफा तैयारी कर रहा है। चीन ने अपने नए सुपर वेपन ‘कैरियर किलर’ मिसाइल के साथ प्रशांत महासागर में अमेरिकी नौ सेना के दांत खट्टे करने की तैयारी कर ली है। भारत है कि वह ‘कामन वेल्थ गेम’ की तैयारी करने में फिसड्डी साबित हुआ है। याद रहे चीन ने ओलंपिक का शानदार कामयाब और लाभदायक 650 करोड़ डालर का मुनाफा कमा कर खुद को सुपरपावर होने की ताल ठोंकी थी। आलंपिक की उसी तैयारियों के फुटजे डिस्कवरी से लेकर दुनिया भर के चैनलों पर छाये रहे। हमारे यहां ‘कामन वेल्थ’ खेल ‘कामन वेल्थ’ बनाने का साधन बन गए है। देश के प‎्रधानमंत्री भ्रष्टाचार पर ऊंची आवाज में बोल भी नही पाये। मिमियाते रह गए। खेलों के आयोजन के मुखिया सुरेश कलमाडी पर भ‎्रष्टाचार के आरोप लगे तो उन्होने कहा कि सोनिया गांधी कहें ता दूंगा इस्तीफा। सोनिया क्यों कहेगीं, क्या कलमाड़ी कहना चाहते है कि वे उन्हे भी हिस्सा पहुंचाते है, या पूरे घपले सोनिया की जानकारी में हो रहे थे। जिसके लिए उनसे संरक्षण मिलता है। पूरे मामले में मीडिया ने जिस तरह से उठाया वह भी कम चौंकाने वाला नही था।
बहरहाल बताया जा रहा है कि चीन की कैरियर किलर एक एंटी शिप बैलिस्टिक मिसाइल है। मिसाइलों की क्षमता करीब 20 हजार किलोमीटर दूर तक मार करने की है। चीन से लगे समुद्र की सीमाओं को लांघते हुए ये मिसाइलें बहुत दूर तक मार कर सकती हैं। इन मिसाइलों के जरिए एशिया ही नहीं बल्कि यूरोप, अमेरिका को भी जद में लिया जा सकता है। इस मिसाइल की जद में पूरे भारत के समुद्री इलाके के अलावा तकरीबन पूरा प्रशांत महासागर है। इस बारे में ग्लोबल टाइम्स की खबर के मुताबिक यह मिसाइल बहुत जल्द तैयार हो जाएगी। चीन ने इस मिसाइल को बनाने के साथ ही दुनिया को एक चेतावनी दी है कि वह अपनी समुद्री सीमा के ऊपर किसी और देश के विमान वाहकों (कैरियर) को इजाजत नहीं देगा।

अखबार ने अपने संपादकीय में कहा है कि चीन के लिए अपने एंटी कैरियर क्षमताओं का विकास करना जरूरी हो गया है। अख़बार ने यह दावा किया कि प्रशांत महासागर में अमेरिका के एयरक्राफ्ट कैरियरों के लिए चीन की एंटी कैरियर मिसाइलें खतरा हैं। अख़बार के मुताबिक चीन को न सिर्फ एंटी शिप बैलिस्टिक मिसाइल की जरूरत है बल्कि शिप कैरियर को तबाह करने वाले दूसरे उपायों की तलाश भी है।

चीन के ये दावे तब सामने आए हैं जब यूएस पैसिफिक कमांडर एडमिरल रॉबर्ट विलर्ड ने चेतावनी दी है कि चीन डोंगफेंग 21 मिसाइल के नए संस्करण विकसित कर रहा है। विलर्ड के मुताबिक डोंगेफेंग 21 मिसाइल अमेरिका के सबसे मजबूत और सुरक्षित जहाज को भेद सकती है।

ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक, अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों की खुफिया एजेंसियों में चीन की एंटी शिप मिसाइल की मारक क्षमता को लेकर मतभेद था। चीन के लिए इन अटकलों पर रोक लगाने के लिए यह जरूरी था कि चीन दुनिया को बताए कि उसके पास समुद्र में मार करने के लिए क्या क्षमता है। हाल ही में अमेरिकी संसद में प्रस्तुत एक रिपोर्ट में अमेरिकी रक्षा मुख्यालय पेंटागन ने कहा था कि चीन ने अपने रक्षा खर्च को बढ़ाते हुए दो अंकों में कर दिया है। चीन इस बजट का इस्तेमाल नए एटमी हथियार, लंबी दूरी की मार करने वाली मिसाइल, पनडुब्बियां, एयरक्राफ्ट कैरियर और साइबर वारफेयर सिस्टम को विकसित करने में कर रहा है।

कैरियर किलर जैसी एंटी शिप बैलिस्टिक मिसाइलें मुख्य तौर पर एयरक्राफ्ट करियर को निशाना बनाएंगी। कैरियर किलर मिसाइल के साथ ही चीन ने चलते हुए एयरक्राफ्ट कैरियर को तबाह करने की क्षमता तकरीबन विकसित कर ली है। इस मिसाइल को लंबी दूरी के ज़मीन पर मौजूद मोबाइल लॉन्चरों के जरिए छोड़ा जाएगा और अगर इसे सही तरह से काउंटर नहीं किया गया तो इस मिसाइल के अलावा बैलिस्टिक, क्रूज मिसाइल, पनडुब्बियों, टॉरपीडो और समुद्र में मौजूद बारूदी सुरंगों के जरिए चीन पश्चिमी प्रशांत महासागर और फारस की खाड़ी में मौजूद अमेरिकी अभियानों को चुनौती देने की स्थिति में आ जाएगा। भारत की सीमा से सटे अरब सागर और हिंद महासागर भी इस मिसाइल की जद में है, तो जाहिर है भारत के लिए भी चिंता की स्थिति है।


-चीन के आर्थिक और सुरक्षा हितों के मद्देनजर हिंद महासागर के बढ़ते महत्व को देखते हुए भारत के पड़ोसी देशों को साथ लाकर आर्थिक स्थिति को मजबूत करना और उभरते हुए भारत को संतुलित करना चीन की रणनीति है।
डीन चेंग, अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ
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चीन भारत को काउंटर करने के लिए पाकिस्तान का पूरा इस्तेमाल कर रहा है। इसके लिए चीन पाकिस्तान को एटमी हथियार, मिसाइल और पारंपरिक हथियार दे रहा है।'
के. सुब्रमण्यम, सुरक्षा मामलों के जानकार
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1962 से चली आ रही खटास

चीन से भारत का संबंध अच्छा नहीं रहा है। यही वजह है कि भारत को लगातार उकसाता रहा है। दोनों देशों के बीच 1962 से चली आ रही खटास हाल ही में विकसित हो रहे अच्छे व्यापारिक रिश्तों के बावजूद कम नहीं हो रही है। चीन भारत को उकसाने के लिए कोई न कोई हरकत करता रहा है।
चीन से जुड़े मुद्दों पर एक नजर
भारत- चीन सीमा की वास्तविक नियंत्रण रेखा में 2008 में 270 बार चीनी घुसपैठ की घटनाएं हुई थीं। 2009 में घुसपैठ की घटनाएं बढ़ीं। 2008 के पहले छह महीने में चीन ने सिक्किम में कुल 71 बार भारतीय इलाके में चीन ने घुसपैठ की। जून, 2008 में चीन के सैनिक वाहनों के काफि़ले भारतीय सीमा से एक किलोमीटर भीतर तक आ गए। इसके एक महीने पहले चीनी सैनिकों ने इसी इलाके में स्थित कुछ पत्थर के ढांचे तोडऩे की धमकी भी दी, जिस धमकी को बाद में चीनी अधिकारियों ने दोहराया भी था।

सितंबर 2008 में लद्दाख में सीमा पर स्थित पांगोंग त्सो झील पर चीनी सैनिकों का मोटर बोट से भारतीय सीमा में अतिक्रमण नियमित रूप से चल रहा है और आज तक जारी भी है। 135 किमी लंबी इस झील का दो तिहाई हिस्सा चीन के पास है और शेष एक तिहाई भारत के पास है। कारगिल युद्ध के दौरान चीन ने इस झील के साथ-साथ पांच किमी का एक पक्का रास्ता बना लिया है, जो झील के दक्षिणी छोर तक है। यह इलाका जो भारतीय सीमा के भीतर आता है।

जून 2009 में जम्मू- कश्मीर में मौजूद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थित देमचोक (लद्दाख क्षेत्र) में दो चीनी सैनिक हेलीकॉप्टर भारतीय सीमा में नीचे उड़ते हुए घुसे। इन हेलीकॉप्टरों से डिब्बाबंद भोजन गिराए गए। जुलाई, 2009 में हिमाचल प्रदेश के स्पीती, जम्मू -कश्मीर के लद्दाख और तिब्बत के त्रिसंगम में स्थित ‘माउंट ग्या’ के पास चीनी फ़ौज सीमा से करीब 1.5 किलोमीटर भीतर आ गई। इन चीनी सैनिकों ने पत्थरों पर लाल रंग से 'चीन' लिखा। 31 जुलाई 2009 को भारत के सीमा गश्ती दल ने ‘ज़ुलुंग ला र्दे’ के पास लाल रंग में चीन-चीन के निशान भी लिखे देखे। सितंबर, 2009 में उत्तराखंड मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ने केंद्र सरकार को चमोली जिले के रिमखिम इलाके के स्थानीय लोगों से मिली चीनी घुसपैठ की जानकारी दी। इस जानकारी के अनुसार पांच सितंबर, 2009 को चीनी सैनिक भारतीय सीमा के भीतर दाखिल हुए।


अरुणाचल प्रदेश

अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन लगातार बयानबाजी करता रहा है। चीन ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग इलाके को ‘दक्षिण तिब्बत’ का नाम दिया है। इसके अलावा वह अरुणाचल प्रदेश को चीन के नक्शे पर दिखाता है। चीन का दावा है कि अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है। यही वजह है कि चीन अरुणाचल प्रदेश के लोगों को वीज़ा नहीं देता है क्योंकि चीन का तर्क है कि अरुणाचल प्रदेश के निवासी चीन के नागरिक हैं। भारत चीन के इन कदमों का विरोध करता रहा है। कुछ साल पहले चीनी सैनिकों ने बुद्ध की एक प्रतिमा को तबाह कर दिया था। इस प्रतिमा को भारत-चीन सीमा पर मौजूद बुमला नाम की जगह पर बनाया गया था। भारत के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के अरुणाचल प्रदेश दौरे का भी चीन ने विरोध किया था। इसके अलावा तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा की भी अरुणाचल यात्रा का चीन ने विरोध किया था। गौरतलब है कि दलाई लामा ने अरुणाचल प्रदेश की यात्रा के दौरान इसे भारत का हिस्सा बताया था।

कश्मीर का मुद्दा

कश्मीर को लेकर चीन का रवैया पाकिस्तान को खुश करने वाला है। चीन ने कई मौकों पर जम्मू-कश्मीर को विवादित इलाका बताकर भारत से खटास बढ़ाई है। जम्मू-कश्मीर के लोगों को वीज़ा जारी करते समय चीन वीजा को पासपोर्ट के साथ चिपकाने की बजाय नत्थी कर देता है। भारत नत्थी किए गए वीजा को मान्यता नहीं देता है। ऐसे में जम्मू-कश्मीर के निवासी चीन की यात्रा नहीं कर पा रहे हैं। अपने इस कदम के पीछे चीन का तर्क है कि जम्मू-कश्मीर एक विवादित इलाका है।

लोन में अड़ंगा

चीन ने अरुणाचल प्रदेश को लेकर भारत और चीन के बीच चल रहे विवाद को तीसरे मंच पर उठाने की कोशिश के तहत एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) के सामने यह मुद्दा उठाया था। भारत ने 88 अरब रुपये के लोन के लिए आवेदन किया था, जिसका इस्तेमाल अरुणाचल प्रदेश में पीने के पानी के इंतजाम के लिए करना था। चीन का तर्क था कि चूंकि अरुणाचल प्रदेश एक विवादास्पद क्षेत्र है इसलिए यहां किसी योजना के लिए लोन नहीं दिया जाना चाहिए।

सिक्किम

चीन 2005 तक सिक्किम को भारत का हिस्सा मानने को तैयार नहीं था। चीन सिक्किम को एक स्वतंत्र देश मानता था। लेकिन 2005 में चीन ने सिक्किम को भारत का हिस्सा मान लिया। लेकिन बावजूद इस मान्यता के चीन सिक्किम में सीमा (वास्तविक नियंत्रण रेखा)का उल्लंघन करता रहा है। 2008 में सिक्किम के उत्तरी हिस्से में चीन की सेना ने घुसपैठ को अंजाम दिया, जिसका भारत ने जोरदार विरोध किया था।
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दोस्ती की कीमत पर चीन से रिश्ते

भारत से बरसों पुरानी दोस्ती की कीमत पर चीन से रिश्ते मजबूत करने में लगे नेपाल ने भारत को ताजा झटका दिया है। ऐसे समय में जब भारत सरकार नेपाल और चीन की बढ़ती करीबी और चीन की भारत विरोधी हरकतों से चिंतित है, नेपाल की विदेश मंत्री सुजाता कोइराला ने कहा है कि चीन के उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल का दौरा नेपाल के लिए सम्मान की बात है। चीन के उपराष्ट्रपति हुई लियानग्यु के नेतृत्व में एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल 9 सितंबर से एक हफ्ते के लिए नेपाल की यात्रा पर आएगा।
सुजाता का यह बयान ऐसे समय आया है जब मीडिया में एक चीनी गुप्तचर और नेपाल के माओवादी नेता के बीच सांसदों की खरीद-फरोख्त से संबंधित बातचीत का टेप मीडिया के जरिए सार्वजनिक हुआ है। इस टेप के मुताबिक माओवादी नेता प्रचंड के एक सहयोगी चीनी गुप्तचर को बता रहे हैं कि उन्हें सरकार बनवाने के लिए 50 सांसद चाहिए, जिन्हें खरीदने के लिए 5 करोड़ रुपये की जरूरत होगी। हालांकि माओवादी नेता महारा ने इस टेप को फर्जी बताया है। भारत सरकार ने इस रिपोर्ट को गंभीरता से लिया है।
नेपाल में भारत की दोस्त के तौर पर मशहूर सुजाता के भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से रिश्ते अब छुपी बात नहीं माने जाते हैं। नेपाल मीडिया में इस बाबत चल रही ख़बरों के मुताबिक सुजाता ने कहा है कि गरीबी और राजनैतिक अस्थिरता की मार झेल रहे देश (नेपाल) के लिए यह गर्व की बात है कि चीनी प्रतिनिधिमंडल यहां के दौरे पर आ रहा है। बीजिंग में चल रहे एक्सपो से लौटने से पहले सुजाता ने यह बात कही।
नेपाली मीडिया में नेपाल में भारत के उच्चायुक्त राकेश सूद और हारे हुए नेपाली प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल, जो फिलहाल कामचलाऊ सरकार चला रहे हैं, के बीच रविवार को हुई चर्चा भी विस्तार से छापी गई है। पूरा कवरेज काफी आलोचनात्मक तरीके से दिया गया है। इसमें कहा गया है कि जिस दिन नया प्रधानमंत्री चुनने की कवायद चल रही थी, उसी दिन सूद की नेपाल से मुलाकात का औचित्य समझ में नहीं आता। खबरों के अनुसार, जब नेपाल की हार सुनिश्चित हो गई थी, तब सूद ने काफी प्रसन्न मुद्रा में उनसे पूछा कि क्या कारण है कि अभी तक नेपाल की पार्टियां प्रधानमंत्री पद के लिए किसी एक नाम पर सहमति नहीं बना सकी हैं।
नेपाल में बढ़ती चीन विरोधी गतिविधियों के बीच बीजिंग ने निगरानी व्यवस्था पुख्ता करने के लिए काठमांडू को 295006 डॉलर मूल्य के सुरक्षा उपकरण मुहैया कराए हैं। नेपाल की यात्रा पर आए चीन के सार्वजनिक सुरक्षा मामलों के उप मंत्री चेन झिमिन ने ये उपकरण नेपाल को सौंपे।
चेन के साथ 11 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल भी आया हुआ है। इस बीच, गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि चीनी मंत्री ने नेपाल के गृह मंत्री भीम रावल के साथ मुलाकात कर द्विपक्षीय एवं सुरक्षा संबंधी मुद्दे पर चर्चा की। मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि यात्रा का मकसद दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रिश्ते को मजबूत करने के उपाय तलाशना है।
बयान में कहा गया है कि बैठक में गृह सचिव गोविंद कुसुम तथा गृह एवं विदेश मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी मौजूद थे। नेपाल में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे तिब्बतियों के चीन विरोधी प्रदर्शनों को देखते हुए हाल के सालों में चीन ने काठमांडू में अपनी दिलचस्पी बढ़ा दी है। बताया जाता है कि नेपाल ने चीन की ‘एक चीन ’ की नीति का समर्थन करते हुए कहा है कि वह अपने देश से उसके खिलाफ कोई गतिविधि नहीं होने देगा।

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

सेक्स की मंडी में उपभोक्ता की चर्चा नही

यह अजब है, सेक्स की मंडी में उपभोक्ता की चर्चा नही है, जिसकी बेतुकी मांग के चलते यह मंडी दिन दूनी रात चौगुनी फलफूल रही है। मीडिया में भेड़ चाल है, पुलिस के पास एक डायरी का हवाला है जिसमें लड़कियों के नाम है जिनका ख्‍ाुलासा इस तरह किया जा रहा है मानों लश्कर-ए-तैयबा के मुखिया को धर दबोचा है। कौन नही जानता की दिल्ली की मंडी में सेक्स किस तरह बिकता है देने वाले किस तरह से कीमत चुकाते है। पर पूरा अभियान एक तरफा चलाया जा रहा है,मजबूरी में इस पेशे में उतरी लड़किया बदनाम हो रही है और उन्हे हजारों लाखों कीमत देकर बाजार में बनाये रखने के दोषी ड्राइंगरूम में न्यूज चैनलों पर इच्छाधारी की काली करतूत न्यूज के मजे ले रहें है। इसी को कहते है चित भी मेरी पट भी मेरी। कौन नही जानता कि यह धंधा कैसे चलता है।
मीडिया और पुलिस बता रही है भगवा चोले की आड़ में हाईप्रोफाइल कॉलगर्ल रैकेट चलाने वाले ढोंगी बाबा द्विवेदी का मुख्य धंधा फार्म हाउसों में होने वाली स्टेग पार्टियों व पांच सितारा होटलों में लड़कियों की सप्लाई करने का था। इसके एवज में बाबा को मोटी रकम मिलती थी। बाबा के दिल्ली, उत्तर प्रदेश व हरियाणा के कई नेताओं से घनिष्ठ संबंध की बात भी सामने आ रही है। मीडिया को चाहिए जितनी तत्परता उसने यह बताने में की कि बाबा के इस धंधे से कई प्रसिद्ध कॉलेजों की छात्राएं व एयर होस्टेस जुड़ी हैं, जिनकी संख्या 30 से अधिक है। इसके पास कई ऐसी भी खूबसूरत लड़कियां हैं, जिसकी कीमत बाबा एक लाख रुपये तक वसूलता था। इसके साथ ही मीडिया व पुलिस को उन उपभोक्ताआं या ग्राहकों के नेताओं के नामों का भी खुलासा करना चाहिए जो मंडी के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। इनका नेटवर्क छोटे शहरो ंसे लेकर नेपाल और दुबई तक फैला है। महिलाओं की तस्करी पुरूषों की हवस शांत करने के लिए ही होती है। बाबा तो इस मडी का मोहरा भर है। देश के भ्रष्टतंत्र में "थ्री डब्ल्यू" का बोल बाला है। चित्रकूट के पूव सांसद प्रकाश नरायण त्रिपाठी इस मामले को चित्रकूट की आदिवासी लड़कियों से भी जोड़ रहें है। असल में यह कोई नयी बात नही है मीडिया हमेशा कालगर्ल को निशाना बनाता है उन्हे ही दोषी ठहराया जाता है, जबकि सचाई यह है कि कभी भी कोई दलाल अपनी पहल पर किसी ग्राहक से बात नही करता, ग्राहक दलाल और लड़की को काल करता है, और साफ बरी हो जाता है। कई साल पहले की बात है लखनउ के एक होटल में एक आईएएस अधिकारी ने कालगर्ल को बुलाया, जब वह कमरे में दाखिल हुई तो उसने देखा सामने एसके पिता खड़े है पिता भी अपनी बेटी को इस धंधे में देख कर आग बूबला हो गया, उसने रिवाल्वर से गोली चला दी। उसकी अपनी बेटी इस धंधे में थी यह बुरा लगा दूसरी की होती तो कोई बात नही, यह इस धंधे की सच्चाई है। बेहतर है कालगर्ल रैकेट की लड़कियों के बजाए उनके ग्राहकों के नाम सावर्जनिक होना चाहिए।

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

चीन को अरूणांचल प्रदेश की जनता ने दिया करारा जवाब

चीन भारत को उलझाने में लगा है। भारत के लचर राजनेता उसके जाल में फंसते जा रहें है। चीन के तेवर आक्रामक है और भारत हमेशा की तरह शांतिदूत के प्रतीक कबूतर की तरह दुबकता जा रहा है। चीन ने अरुणाचल प्रदेश को विवादित क्षेत्र बताते हुए एक बार फिर राय पर अपना दावा जताते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अरुणाचल यात्रा पर आपत्ति जताई, जिसे भारत ने तत्काल खारिज कर दिया। इसके ठीक एक दिन बाद राय में हुए मतदान में अरूणांचल के नागरिकों ने 70 प्रतिशत मतदान कर चीन को जवाब दे दिया है।
याद रहे चीन ने भारत के जम्मू-कश्मीर के 43 हजार 180 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर रखा है, जबकि चीन का आरोप है कि भारत ने चीनी क्षेत्र की 90 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर अपना कब्जा कर रखा है, अधिकांश अरुणाचल प्रदेश में।
बहरहाल भारत के राजनेताओं से यादा उम्मीद करना बेकार है। 1962 के पहले के पंचशील की अत्यंत शांतिप्रिय अहिंसक संधि करने वाले देश के नेताओं में तेजी और आक्रामकता सदैव से नदारत रही है। हालांकि कुछ अपवाद भी हुए है। एक बार फिर 1962 के पहले वाले हालात बनते जा रहें है। इस बार चीन की तैयारी पहले से बेहतर है। नेपाल में उसका समर्थन और ताकत दोनो बढ़ी है। उसकी उत्तरी सीमा से सटा रूस अब सोवियत संघ जैसा ताकतवर नही है। भारत के लिए राहत की बात सिर्फ इतनी है कि उसकी अमेरिका व रूस दोनों से मित्रता है दोनों चीन से सतर्क भी है। लेकिन घरेलू मोर्चे पर समाजवादी नेता मुलायम मुलायम सिंह के अलाव कोई चीन के मसले पर बोलने से परहेज कर रहा है। मुलायम सिंह की अवाज नक्कारखाने में तूती की तरह है।
मुलायम ने समाजवादी चिंतक डा. राममनोहर लोहिया की पुण्यतिथि पर कहा कि प्रधानमंत्री कमजोर न होते तो चीन की क्या मजाल थी कि वह देश की सीमा में घुसने की हिम्मत करता। पाकिस्तानी आतंकवादी चीन के रास्ते से घुसपैठ कर रहे हैं। नेपाल के रास्ते से पाकिस्तान जाली नोट भेज रहा है। पर, केन्द्र सरकार चुप्पी साधे हुए है। मुलायम ने कहा कि प्रधानमंत्री को तो सिर्फ इस बात की चिंता सताए रहती है कि कैसे उनकी कुर्सी बची रहे। जिस देश की सरकार और प्रधानमंत्री कमजोर होगा, वह देश भी कमजोर होगा। रक्षामंत्री, चीन की घुसपैठ की घटना को कोई खास बात ही नहीं मानते। उन्होंने कहा कि जब मैं रक्षामंत्री था, तो चीन ने ऐसी ही हिमाकत करने की कोशिश की थी। मेरे निर्देश पर सेना ने चार किलोमीटर अंदर घुस कर राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। देश को आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए चीन और नेपाल के रास्ते से पाकिस्तान जाली नोट भेज रहा है। तीनों देश में मौजूद राजदूतों को इसका पता हैं। प्रधानमंत्री को बताना होगा कि उन्हें राजदूतों ने यह खबर दी कि नहीं। दी तो उन्होंने क्या कदम उठाया। मुलायम ने यह बयान देकर खुद को खांटी समाजवादी होना साबित किया है।
याद रहे चीन ने चुनाव प्रचार के लिए मनमोहन की अरुणाचल यात्रा के दस दिन बाद एतराज की प्रतियिा दी। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मा झाओशू ने कहा कि हम भारतीय पक्ष से चीन की गंभीर चिंता का समाधान करने और विवादित क्षेत्र में परेशानी खड़ी न करने की मांग करते हैं, ताकि चीन और भारत के रिश्तों में एक स्वस्थ विकास हो सके। उन्होंने उल्लेख किया कि चीन और भारत ने कभी आधिकारिक रूप से सीमांकन नहीं किया और भारत-चीन सीमा के पूर्वी हिस्से पर बीजिंग का दावा पूरी तरह साफ और स्पष्ट है। विदेश मंत्रालय के बयान के बाद भारत में चीनी राजदूत झांग यान नई दिल्ली में साउथ ब्लॉक के विदेश मंत्रालय में चीन मामलों के प्रभारी संयुक्त सचिव विजय गोखले से मिले।
भारत के विदेश मंत्री एसएम कष्णा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अरुणाचल यात्रा पर चीन की आपत्ति को यह कहकर खारिज कर दिया कि राय भारत का अखंड हिस्सा है। कष्णा ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है। हम इसपर कायम हैं। दूसरे क्या कहते हैं इससे कोई मतलब नहीं है। भारत सरकार का रुख है कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न भाग है। इसके बाद भारत के विदेश मंत्रलय ने एक बयान भी जारी किया और मनमोहन की अरुणाचल यात्रा पर चीनी आपत्ति पर निराशा तथा चिंता जताई। विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न हिस्सा है और चीन इससे वाकिफ है। उन्होंने कहा कि चीन का बयान सीमा मुददे पर दोनों देशों की सरकारों के बीच जारी चर्चा प्रयिा में मदद नहीं करेगा। याद रहे चीन ने दलाई लामा की अरूणांचल प्रदेश की यात्रा पर एतराज जताया था।
चीन की राजनीतिक चालों से साफ है िवह एक साथ कई मोर्चो पर काम कर रहा है। जबकि भारत सरकार की नीति बेहद ढुलमुल। यानि समय गुजरने दो कोई न कोई रास्ता निकलेगा वाली नीति पर चल रहा है। यह नीति केन्द्र में सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस पार्टी की प्रिय नीति रही है। चीन ने जता दिया है कि वह अरूणांचल के मुद्दा पर कत्तई उदार नही है। उसकी निगाह अरुणाचल प्रदेश की विकास परियोजनाओं के लिए एशियाई विकास बैंक मिलने वाली सहायता पर भी है।
याद रहे कि चीन ने पिछले साल भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अरुणाचल यात्रा पर आपत्ति जताई थी। चीन की आपत्ति के जवाब में तत्कालीन विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा था कि अरुणाचल हमारे देश का एक अखंड हिस्सा है, इसलिए यह स्पष्ट है कि प्रधानमंत्री देश के किसी भी हिस्से की यात्रा करेंगे।
भारत का विदेश मंत्रलय के प्रवक्ता ने इस बात को रेखांकित किया कि चीन का इस तरह का बयान सीमा के मुद्दे पर दोनों सरकारों के बीच चल रही बातचीत की प्रयिा में सहयोगात्मक नहीं है। भारत चीन के साथ मतभेदों को निष्पक्ष, व्यावहारिक और आपसी स्वीकार्य तरीके से हल करना चाहता है। चीन की आक्रामकता उसकी तिब्बत में बढ़ती ताकत और नेपाल में दखल की नये सिरे से रणनीतिक समीक्षा की जरूरत है।
चीन के मामलों के जानकार और पूर्व विदेश मंत्री के नटवर सिंह ने खेद जताया कि भारत ने 1962 में चीन के साथ हुए युध्द के पीछे के कारणों की अभी तक व्यापक समीक्षा नहीं की है तथा इस प्रयिा की वाकई जरूरत है।
अपनी नई पुस्तक माई चायना इयर्स, 1956-88 के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने पिछले 60 साल में भारत चीन संबंधों के विभिन्न पहलुओं को छुआ है उन्होने कहा, 1962 क्यों हुआ। हमारी तरफ से इसके बारे में कोई गंभीर विश्लेषण नहीं किया गया। हालांकि नटवरसिंह चीन के मामले में कांग्रेस की नीतिओं के ही पक्षधर है। पर भी वे मानते है कि 1962 के पीछे माओत्से तुंग का भारत को सबक सिखाने का निर्णय था। -------------------

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

चीन की परेड से बेहाल होने से पहले सोचें


चीन के शक्ति प्रदर्शन पर, यह एक लोकतांत्रिक देश भारत के बुध्दिजीवियों की हाय तौबा है। मीडिया ने जिस तरह से पड़ोसी देश की परेड की भव्यता का खाका खींचा वह चौंकाता है। यह भी बताता है कि भारत में आक्रमणकारी क्यों सफल होकर सैकड़ों सालों तक कामयाबी से शासन चलाते रहें है। चीन पर पूरा मीडिया अभियान बेहद बेतुका और एकतरफा है। चीन की परेड को देखने के लिए सिर्फ तीस हजार लोगों को देखने की अनुमति दी गई। क्या यह लोकतांत्रिक भारत में संभव है यदि सरकार ऐसा कोई निर्णय ले तो मीडिया, तथाकथित सामाजसेवी संगठनों, लोकतंत्रवादियों व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रया क्या होती। क्या लोग सरकार को निर्देश मानते, परेड देखने के लिए प्रदर्शन धरने, जनसभाएं न होती। विपक्षी दल का रवैया कैसा होता उसके बारे में भी सोचे। पिछले दिनों उरूगुर के सांप्रदायिक दंगों में जो कुछ हुआ वैसा क्या भारत में संभव है। ओलंपिक के पहले बीजिंग को संवारने के लिए जिस तरह लोगों को हटाया गया इलाके खाली कराये गये, क्या ऐसा करना भारत में संभव है। क्या उसी तरह दिल्ली को संवारना संभव है। चीन की भव्य परेड दिखाने वाली मीडिया को बताना चाहिए की चीन के श्रमिक कानून क्या कहते है। उनकी भारत के श्रमिक कानूनों से तुलना करना चाहिए। आप क्यों भूलते है कि देश की अर्थव्यस्था को मजबूत करने के लिए चीन के लोग देश कुछ साल पहले तक साइकिलों का इस्तेमाल करते थे। वहां की सड़कों पर कारें बेहद दुर्लभ थीं। क्या भारत में एक बच्चे का कानून उसी सख्ती से लागू किया जा सकता है जिस तरह से चीन में लागू है। क्या थ्येनमान चौक पर प्रदर्शन कर रहे लोकतंत्रवादियों को भारत में भी उसी तरह टैंकों के नीचे कुचलना संभव है जिस तरह से चीन में। क्या चीन में औद्योगिक व विकास की परियोजनाओं के लिए जमीनों का अधिग्रहण भारत की तरह बेहद मुश्किल है। क्या चीन की तरह भारत में कुछ इलाके में पत्रकारों व मीडिया के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। क्या भारत कश्मीर में उसी तरह के फैसले ले सकता है जिस तरह के फैसले चीन ने तिब्बत के मामले में लिया है। ऐसे न जाने कितने सवाल है जो भव्य परेड की ललाकालीन के नीचे से सिर उठाये हुए है। चीन की इस आतिशबाजी की चमक के पीछे उस बारूद का हाथ है जिसे कम्युनिस्ट शासन ने तैयार किया है। याद करीये सोवियत रूस को। क्या 1984 के विखंडन के पहले सोवियत संघ आज के चीन से पीछे और कम चमकदार था। क्या सोवियत संघ की तकनीकी और सैन्य श्रेठता आज के चीन से कमतर थी। फिर भारतीय मीडिया क्यों प्रलाप कर रहा है।
यही वजह है कि एक अक्टूबर को सैन्य परेड और सैंकड़ों टैंक तथा अन्य हथियारों का निरीक्षण थ्येनआनमन गेट पर बने मंच से राष्ट्र के नाम जारी संबोधन में चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ ने कहा- हमने हर प्रकार की कठिनाई और विफलताओं पर विजय हासिल की है और विश्व को ज्ञात है कि महान उपलब्धियों के लिए हम जोखिम उठाने का माद्दा रखते हैं। देशभक्ति से ओत प्रोत लोगों की उपस्थिति में जिंताओ ने कहा- गत 60 वर्षों में नव चीन का विकास और प्रगति इस बात का प्रमाण है कि समाजवाद ही चीन को बचा सकता है और केवल सुधार तथा खुलापन चीन, समाजवाद और मार्क्सवाद का विकास सुनिश्चित कर सकता है। उन्होंने कहा कि आज समाजवादी चीन आधुनिकीकरण के मार्ग पर प्रशस्त है और विश्व तथा भविष्य पूर्व की ओर बढ़ रहा है।

देश की जनता को गुमराह करने की यह छूट उसे सिर्फ भारत में मिल सकती है चीन में नही। दोनों देशों की शासन प्रणाली में मूल अंतर है। भारत में बोलने लिखने सहित तमाम आजादी चीन में नही मिल सकती है। हर चीज की कीमत होती है। असल में भारत व चीन की शासन प्रणाली में एक मूल अंतर है। भारत में जनता सरकार की नीति तय करती है और चीन में शासक तय करता है कि जनता कैसे चले क्या करें क्या न करें कहां जाए कहां न जाये। ऐसे चीन की तथाकथित चकाचौध से प्रभावित होने से पहले सोचे।